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अता – ए- इश्क

मेरे ख़्याल
मेरे ख़्याल
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क्या सुनाऊ मैं आपको माज़ी की दास्ताँ

उजड़े  हुए चमन में टूटा सा एक  मकाँ

प्यार की आग जब दिल मे लगी हमारे

घर को इसी आग ने किया धुआँ धुआँ

तूफाँ में जो  फँसे यूँ छोडा साथ उसने

अब भी साहिलों को ढूँढ्ती है कश्तियाँ

कहा क़ाफिर मुझको रसवा किया मुझे

मेरी ईवादत में वो निकाले था ख़ामियाँ

आया ना खुदा को भी हम पे रहम कभी

जलती रही उसके आगे अपनी हस्तियाँ

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