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” कुछ कहू …”

मेरे ख़्याल
मेरे ख़्याल
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तेज धूप व बारिस में पड गये बीमार भी
थोडा सा नजला हुआ थोडा सा बुखार भी

सोना उठा चाँदी उठी गिर पडे घरवार भी
पर महँगाई ऊँची और पहुँची इस बार भी

बस्ती में कमाल कुछ ऐसा हुआ है दोस्तों
पुलिस की गाडी चली हुए बन्द बाजार भी

कैसे बडे ना भुखमरी का जोर यहाँ दोस्तों
रोज़गार कम है और लोगो की भरमार भी

कैसे निकलेगा भ्रष्टता का भूत सामाज से
नेता है कामचोर कुछ घूसखोर सरकार भी

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