मेरे ख़्याल
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उतर के चाँद भी क्या वाह–वाह करेगा
तेरे दीद के वास्ते हर इंशा चाह करेगा
हुस्न है तेरा क़्यामत का जल्वा ग़ाफिल
इक रोज़ यें सारे जहाँ को तबाह करेगा
कर दी है कैद ज़िस्म में क़ायनात सारी
अपनी कारीग़री पे नाज़ अल्लाह करेगा
चाँदनी से हुस्न है लबरेज़ तेरा क़ातिल
चाँद की तरफ़ अब कौन निगाह करेगा
येँ आखेँ है तेरी या मय के भरे प्याले
इनके वास्ते रिन्दाँ सारे गुनाह करेगा
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