- 10 Posts
- 37 Comments
हमारे देश की राजनीति व राजनेता दोनों ही बडे दुषित हो चले है सत्ता के लालच में जो कुछ बन पडता है बस कर डालते है वो यें देखना जरूरी नही समझते कि हमारे जो क्रिया – कलाप है, वो उचित है भी या नही । उन्हे बस बोलने से मतलब है चाहे वो बाते झूठी सांत्वनायें हो या बडे – बडे वायदे । क्योकि बोलने में धन थोडी लगता है बस शारीरिक श्रम लगता है यें मसक्कत वो आये दिन करते रहते है यहाँ ना तो आप जानते है कि कौन ज्यादा भ्रष्ट नेता है या कौन सबसे बडा घूसख़ोर है और ना ही मैं , यें सब तो वो लोग स्वयँ एक – दूसरे से बहस होने पर बताते है कि इसने यें गलत किया और फलां पार्टी ने वो गलत किया यहाँ इनकी हरकते दो ऐसे महामानवों के जैसे है जो समाज में अपने सम्मान के दूसरे के सम्मान को कलंकित करते है जहाँ वो झगडे के बीच में एक – दूसरे कि ही पोल खोलने लगते है । हमारे आदरणीय नेतागण भी कुछ ऐसी ही हरकते दोहराते रहते है जैसे कि फिलहाल मोदी जी को ही ले लिजिये उनके जो मुँह से निकल पडता है बस बोले चले जाते है बाद में श्रोतागण के बीच रह जाता है विवाद ।
दरआसल ऐसी हरकतों का मूल आधार उनके हाथ से सत्ता निकल जाने का डर है और यही डर उनकी हडबडाहट को पैदा भी करता है और बढाता भी है यहाँ इनकी हडबडाहट कभी – कभी उनके लिये सन्देहात्मक परिस्थितियाँ खडी कर देती है और यें महज उनका ही नही बल्कि लगभग सभी नेतओं का मानसिक गुण है जो दबाब कि स्थितियों में प्रदर्शित होता है । आज – कल सपा पार्टी लगी है गठबंधन में और बसपा लगी है सपा की खामियों को जनता के सामने लाने में । यहाँ हर कोई पार्टी लगी है अपनी दाल गलाने में और खुद को सही साबित कर विरोधी पार्टी को गलत साबित करने में । परन्तु क्या यें सभी दल अपने अपने स्थान पर सही है ? जो कर रहे है वो सही है ? सम्भवतः नही । यें अफरा तफरी महज़ प्रदेश सत्ता में नही केन्द्र में भी पूर्णरूप से व्याप्त है और मूल कारण है सत्ता ।
आज सत्ता इतनी मह्त्वपूर्ण है कि उसके लिये यें नेतागण गरीब जनता और आम इंसान दोनों के जीवन यापन को दिन प्रतिदिन और दुष्कर बनाते चले जा रहे है हमारी माननीय सरकार ने गरीबी रेखा इतनी छोटी कर दी है कि वो इंसान जो दिन भरे में एक वक्त ही खाना खाये उसके भी पाँव इससे आगे निकल जाये । एक गाँव निवाशी की प्रतिदिन महीने की आय 810 रूपये और शहर निवाशी की आय 1000 रूपये उसे गरीब नही माना जायेगा । तो एक बात मैं अपनी सरकार से पूछ्ना चाहूँगा कि उनके नज़र कौन गरीबी सीमा के अन्दर आता है ? क्या वो जो दोनों ही वक्त भूखा रहे या वो जो दिन भर में बस एक बार खाने खा सके । सरकार के ऐसे कदम से पता चलता है कि आज – कल हमारी सरकार गरीबों को कम कर रही है , गरीबी को नही ।
Read Comments