मेरे ख़्याल
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मानी नही जो हमने ख़ता अपनी
आज महंगी पड गई अना अपनी
करते रहे सब काम अपने हिसाब से
बस होती रही हार हर मतर्बा अपनी
डगमगा गये सालों के नाते ख़ामखाँ
जाने क्या कह गुजरी जुबाँ अपनी
किसके ऊपर उछ्लता है बता तो दे
क्या हाथ अपने औकात क्या अपनी
मै ख़ुशी से खुदको निलाम कर दूँ
ज़लिम तू ख़्वाहिसे तो बता अपनी
कोई खोट मेरी ईवादत में ही होगा
जो असर करती नही दुआँ अपनी ॥
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