मेरे ख़्याल
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अब तेरे बाद मेरी ज़िंदगी में कोई भी मज़ा नही
तेरी बेरूखी से कड़ी मेरे लिए कोई भी सज़ा नही
तेरा गुनाहगार हूँ ना समझ हूँ या नादान ही कह ले
पर मुझसे बात तो कर ज़रा मैं इतना भी बुरा नही
मिलता हूँ सबसे आजकल अंजानो के मानिंद मैं
की जो तू नही मेरा तो यहाँ पर कोई भी मेरा नही
नही मंज़ूर मुझे भले उम्र लाफ़ानी अता करे खुदा
जो तुझको नही कबूल तो उसमे मेरी भी रज़ा नही
कर लिया सौदा बैंच डाली अना इश्क़ के हाथों मैंने
मैं और दीवानो सा हूँ पागल हाँ मुझमे भी हया नही
छोड़ तो ज़रा ख्यालों के पुल बाँधना नादानी ना कर
हक़ीक़त से आँख मिला फिर देख हक़ मे क्या नही
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